सरस्वती वंदना – शब्दार्थ व भावार्थ
विद्यार्थियों को संस्कारक्षम शिक्षा प्रदान करने तथा उन्हे
देश-समाज के प्रति संवेदनशील बनाने के विद्या भारती के लक्ष्य की पूर्ति में वंदना
एक प्रमुख घटक है । “ वंदना पवित्रता और आध्यात्मिकता के वातावरण में विद्या की
अधिष्ठात्री माँ सरस्वती, ओंकारस्वरूप परमात्मा तथा जीवन दायिनी-पालनकारिणी भारतमाता का
चिंतन और श्रद्धा भाव का जागरण हमारे भैया-बहिनों के मन में एकाग्रता, आध्यात्मिकता, राष्ट्रभक्ति , ईश्वर निष्ठा तथा
सामाजिक संवेदना और एकात्मता का भाव भरने में सफल हो” यही वंदना का
उद्देश्य है । इन श्रेष्ठ विचारों, सद्भावों, उत्तम गुणों को आत्मसात करके भैया -बहिन निश्चय ही श्रेष्ठ और
जिम्मेदार नागरिक बनेंगे और राष्ट्र सेवा में प्रवृत्त होंगे ऐसा विश्वास है ।
कोई भी कथन तब तक प्रभावी एवँ हृदयग्राही नहीं होता जब तक कि
शब्दों में छिपे अर्थ का बोध न हो । शब्द निर्जीव होते हैं, अर्थ ही उन्हे
सजीव एवँ सार्थक करता है । वंदना का अर्थ यदि हृदयंगम होगा तभी शब्द भावानुगत होकर
प्रभावी हो पायेंगे । सामान्य आचार्य वंदना के अर्थ से भली-भांति परिचित हो तभी वह
भैया-बहिनों तक वास्तविक अर्थ संप्रेषित कर पायेगे । इसी उद्देश्य से वंदना की
विस्तृत व्याख्या की गई है कि प्रत्येक शब्द का भाव भैया-बहिनों के हृदयगत हो तथा
वे तल्लीनता से भावपूर्ण होकर वंदना को प्रभावी ढंग से कर सकें ।
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता | या वीणा
वरदण्ड मंडित करा, या श्वेत पद्मासना ||
या ब्रह्माच्युत शंकर प्रभ्रितिर्भिर देवैः सदा वन्दिता | सा
मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा ||
शब्दार्थ : या
– जो ; कुंद- एक प्रकार का
श्वेत पुष्प जो शिशिर ऋतु में विकसित होता
है ; इंदु- चद्रमा
(विशेषतः बाल चंद्र जो निष्कलंक होता है जिसका शिव से सम्बंध है) ; तुषार- शीतकाल में वायु का कम तापमान में जमने पर जल बिंदुओं
से युक्त होकर हिम के रूप में दिखने वाला तत्व ; धवला- श्वेत, पवित्र, अम्लान ; शुभ्र- श्वेत, सौम्य ; वस्त्रावृता – वस्त्रों
से ढकी हुई ,वस्त्र पहनेहुए ;
वीणा – एक प्रकार का वाद्य
यंत्र स्वर्ग में गंधर्व जिसका वादन करते
हैं । यह सितार से भिन्न है । वीणा के दोनो तरफ तुम्बे लगे होते हैं | वर- श्रेष्ठ , उत्तम ; दण्ड - वीणा का लम्बा दण्ड जो दोनों तुम्बों के
मध्य का भाग है ; मण्डित- सुशोभित ;
कर - हस्त, हाथ ; पद्मासना – कमल पर
आसीन (बैठना ) ; ब्रह्मा- सृष्टि का कर्ता , अच्युत - अपने
स्वरूप, सामर्थ्य, स्थान से च्युत न होकर अचल, अस्खलित, निर्विकार रूप से
स्थिर रहने वाला - विष्णु (पालनकर्ता) शंकर- सृष्टि का प्रलय करने वाला ; प्रभृति – जैसे ; वंदिता- पूजनीया ; पातु- रक्षा करे ; निःशेष – समाप्त करना, शेष न रहने देना ; जाड्यांधकारापहा-
जड़ता, निश्चेष्टता, निष्क्रियता के अंधकार का अपहरण करना अर्थात समाप्त करना ।
भावार्थ : जो
(विद्या की देवी सरस्वती) कुंद के पुष्प , चंद्रमा , हिमराशि के समान
धवल मोतियों की माला पहने हुए है; जो श्वेत वस्त्रों से आवृत है (जिसने श्वेत
वस्त्र पहने हुए हैं) जिसके हाथ में वीणा का श्रेष्ठ दण्ड शोभायमान है तथा जो
श्वेत कमल पर आसीन है ; ब्रह्मा, विष्णू, शंकर जैसे अन्य देवता भी जिसकी वंदना करते हैं, (उन देवों की भी जो
वंदिता है) , जो भगवती अज्ञानरूप जड़ता का अपहरण करके समाप्त करने वाली है, ऐसी सरस्वती देवी
हमारी रक्षा करे ।
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमाम् आद्याम् जगद् व्यापिनीम् । वीणा पुस्तकधारिणीमभयदां जाड़्यांधकारापहाम् ॥
हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम् । वंदे
तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥
शब्दार्थ :
शुक्ल – श्वेत ; ब्रह्मविचारसार – ब्रह्म सम्बंधी विचार का सार (महावाक्यादि) ; आद्या - आदि शक्ति ;
व्यापिनी - फैली हुई, व्याप्त ; अभयदां - अभय
प्रदान करने वाली ; जाड़्यांधकारापहा – जड़ता
के अंधकार को दूर करने वाली ; हस्ते - हाथ में ;
विदधतीं - धारण करते हुए ; पद्मासने
– कमल के आसन पर ; संस्थिताम् - विराजमान, स्थित ; बुद्धिप्रदाम - बुद्धि प्रदान करने वाली ।
भावार्थ : उस
शुक्ल वर्ण वाली, सम्पूर्ण चराचर में व्याप्त, परब्रह्म के विषय
में किए गये विचार एवँ चिंतन का परम सार रूप आदिशक्ति, अपने हाथ में
वीणा, पुस्तक तथा शुद्ध स्फटिक की माला धारण करने वाली, मानव जाति को अभय
का वरदान देने वाली, अज्ञान के अंधकार को विदीर्ण करने वाली, कमल के आसन पर
विराजमान उस परमेश्वरी भगवती माँ शारदा की मैं वंदना करता/करती हूँ, जो बुद्धि
प्रदाता है, ज्ञान को देने वाली है ।
प्रार्थना
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी अम्ब विमल मति दे |
जग सिरमोर बनाएं भारत ,वह बल विक्रम दे, अम्ब विमल मति दे |
साहस शील ह्रदय में भर दे, जीवन त्याग तपोमय कर दे |
संयम सत्य स्नेह का वर दे, स्वाभिमान भर दे ||
लव कुश ध्रुव प्रह्लाद बनें हम, मानवता का त्रास हरें हम|
सीता सावित्री दुर्गा माँ, फिर घर घर भर दे ||
हे हंस वाहिनी ज्ञानदायिनी अम्ब विमल मति दे |
भावार्थ :- हे, हंस पर विराजमान,
ज्ञान देने वाली माँ आपसे प्रार्थना
है कि हमें विशुद्ध, निर्मल बुद्धि प्रदान करो । हे माँ, हमें ऐसा बल, शौर्य प्रदान करो
जिसे प्राप्त कर हम भारतवर्ष को फिर से समस्त विश्व से श्रेष्ठ बना सकें।
हमारे हृदय में साहस, विनय के श्रेष्ठ
गुण भर दो जिससे हम त्याग और तपस्या के मार्ग पर चलते हुए अपना जीवन यापन करें ।
हे माँ आप हमें सयम में रहने का, सत्यपथ पर चलने का,
सबके प्रति स्नेह भाव रखने का वरदान
दें ताकि हम स्वाभिमानपूर्वक इस संसार में रहें ।
हे माँ, आप हमें वह शक्ति प्रदान करो कि हम भी लव-कुश के समान
शौर्यवान एवँ विक्रमी, ध्रुव के समान दृढ़
आस्थावान , प्रहलाद के समान प्रभु की अनन्य भक्ति करते हुए सम्पूर्ण मानव
जाति के कष्टों का निवारण कर सकें । हे माँ, सीता के समान चरित्रवान, सावित्री के समान
पतिव्रता तथा दुर्गा के समान अन्याय-अत्याचार का विनाश करने वाली पवित्र स्त्रियाँ
भारत के प्रत्येक घर में जन्म लें, ऐसा वरदान दें । हे माँ, आप हमें निर्मल बुद्धि प्रदान करें ।
👌👌👌
ReplyDeleteNice
Deleteबहुत सटीक एवं सुंदर व्याख्या
ReplyDeleteकृपया मुझे या कुंदेंदु तुषार हार धवला के लेखक का नाम बताएं
ReplyDeleteलेखक महाकवि अथवा ऋषि मुनि जो भी से लिखे हो मुझे उनका नाम और स्रोत जानना है
नमस्कार, धन्यवाद, बहुत ढूंढने के बाद आपके लेख से सही और संतोषकारक अर्थ मिला। और भी लेख देखे आपके बहुत अच्छा लगा राष्ट्र भाव से भरे लेखों को देख के।
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