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Showing posts from January, 2018

सरस्वती वंदना – शब्दार्थ व भावार्थ

विद्यार्थियों को संस्कारक्षम शिक्षा प्रदान करने तथा उन्हे देश-समाज के प्रति संवेदनशील बनाने के विद्या भारती के लक्ष्य की पूर्ति में वंदना एक प्रमुख घटक है । “ वंदना पवित्रता और आध्यात्मिकता के वातावरण में विद्या की अधिष्ठात्री माँ सरस्वती , ओंकारस्वरूप परमात्मा तथा जीवन दायिनी-पालनकारिणी भारतमाता का चिंतन और श्रद्धा भाव का जागरण हमारे भैया-बहिनों के मन में एकाग्रता , आध्यात्मिकता , राष्ट्रभक्ति , ईश्वर निष्ठा तथा सामाजिक संवेदना और एकात्मता का भाव भरने में सफल हो ” यही वंदना का उद्देश्य है । इन श्रेष्ठ विचारों , सद्भावों , उत्तम गुणों को आत्मसात करके भैया -बहिन निश्चय ही श्रेष्ठ और जिम्मेदार नागरिक बनेंगे और राष्ट्र सेवा में प्रवृत्त होंगे ऐसा विश्वास है । कोई भी कथन तब तक प्रभावी एवँ हृदयग्राही नहीं होता जब तक कि शब्दों में छिपे अर्थ का बोध न हो । शब्द निर्जीव होते हैं , अर्थ ही उन्हे सजीव एवँ सार्थक करता है । वंदना का अर्थ यदि हृदयंगम होगा तभी शब्द भावानुगत होकर प्रभावी हो पायेंगे । सामान्य आचार्य वंदना के अर्थ से भली-भांति परिचित हो तभी वह भैया-बहिनों तक वास्तविक अर्थ संप्रे

आचार्य का स्व विकास

क लकत्ता के एक परिवार में एक विदेशी महिला कुछ दिन के लिए रहने आई। कलकत्ता घूमने का भी मौका लगा। वापिस जाने का जब समय आया तो अंतिम दिन उस परिवार ने अपने रिश्तेदारों, परिजनों को बुलाकर Get Together रखा। एक व्यक्ति ने उस विदेशी महिला से प्रश्न किया कि आपको कलकत्ता कैसा लगा। महिला ने उत्तर दिया वैसे तो सब ठीक है परन्तु यहाँ गंदगी बहुत है। व्यक्ति ने कहा आपको पता है कि कलकत्ता की आबादी कितनी है। महिला का बड़ा रोचक उत्तर था। और कितने लोग चाहिए कलकत्ता को साफ रखने के लिए। ये तो महत्व का विषय है कि हम कितनी संख्या में हैं। इससे भी अधिक महत्त्व तो इस बात का है कि हम कैसे हैं | Dr. Sukrano, President Indonesia Says, “You Can’t teach what you know, you can’t teach what you want to teach, but you can teach what you are.” हम सब आचार्य शिक्षा-क्षेत्र में कार्य कर रहे कार्यकर्त्ता हैं।इस नाते हम कैसे हैं और कैसे होने चाहिये इसके विषय में चिंतन करने की आवश्यकता है। शिक्षा क्षेत्र में आचार्य के प्रति श्रद्धा होना यह आवश्यक है। यह श्रद्धा दो बातों से खडी होती है, चरित्र और प्रतिबद्धता से। चरित्र कैसा