आचार्य का स्व विकास

लकत्ता के एक परिवार में एक विदेशी महिला कुछ दिन के लिए रहने आई। कलकत्ता घूमने का भी मौका लगा। वापिस जाने का जब समय आया तो अंतिम दिन उस परिवार ने अपने रिश्तेदारों, परिजनों को बुलाकर Get Together रखा। एक व्यक्ति ने उस विदेशी महिला से प्रश्न किया कि आपको कलकत्ता कैसा लगा। महिला ने उत्तर दिया वैसे तो सब ठीक है परन्तु यहाँ गंदगी बहुत है। व्यक्ति ने कहा आपको पता है कि कलकत्ता की आबादी कितनी है। महिला का बड़ा रोचक उत्तर था। और कितने लोग चाहिए कलकत्ता को साफ रखने के लिए। ये तो महत्व का विषय है कि हम कितनी संख्या में हैं। इससे भी अधिक महत्त्व तो इस बात का है कि हम कैसे हैं | Dr. Sukrano, President Indonesia Says, “You Can’t teach what you know, you can’t teach what you want to teach, but you can teach what you are.”हम सब आचार्य शिक्षा-क्षेत्र में कार्य कर रहे कार्यकर्त्ता हैं।इस नाते हम कैसे हैं और कैसे होने चाहिये इसके विषय में चिंतन करने की आवश्यकता है। शिक्षा क्षेत्र में आचार्य के प्रति श्रद्धा होना यह आवश्यक है। यह श्रद्धा दो बातों से खडी होती है, चरित्र और प्रतिबद्धता से। चरित्र कैसा हो उसके बारे में सब जानते हैं। प्रतिबद्धता की चर्चा यहाँ करेंगे। चार प्रकार की प्रतिबद्धता आचार्य के लिए आवश्यक हैं।
1-Commitment to Student – बालक के प्रति प्रतिबद्धता – परम पूजनीय श्री गुरुजी काशी हिन्दू विश्विद्यालय में प्राध्यापक थे। परीक्षा के समय एक छात्र ने कहा मेरी तैयारी नहीं हुई है। इसलिए मैं परीक्षा नहीं दूंगा। तब श्री गुरुजी ने कहा मैं तुम्हारी तैयारी करवाऊंगा। वह छात्र कला संकाय में पढाई करता था। श्री गुरुजी विज्ञान के प्राध्यापक थे। लेकिन श्री गुरुजी कला के विषयों का अध्ययन करके उस छात्र को पढ़ाते थे। वह छात्र परीक्षा में अच्छे अंक लेकर पास हुआ। शिक्षा बालक केद्रित है। अत: बालक की आवश्यकता को ध्यान में रखकर हर संभव प्रयास द्वारा उसे शिक्षित करना आचार्य का कर्त्तव्य है। 
2. Commitment to Subject – विषय के प्रति प्रतिबद्धता–ज्ञानार्जन में सहभागिता व योगदान आवश्यक है। यूनेह्स्को द्वारा प्रकाशित ट्रेजर वीथीन पुस्तक में वर्णन हैं- Learning to Learn, Learning to do, Learning to Live together and learning to be. अभ्यास की निरंतरता अनिवार्य है।
3-Commitment to Society- समाज के प्रति प्रतिबद्धता–कोठारी आयोग की रिपोर्ट में कहा है कि हमारा विद्यालय समाज का एक टापू नहीं होना चाहिए बल्कि सामाजिक चेतना का केंद्र होना चाहिए।
हमारे विद्यालय, महाविद्यालय, विश्विद्यालय, छात्रों में सामाजिक जागरूकता चेतना-संवेदना जगाने एवं उसमें राष्ट्रभक्ति के संस्कार देने के केंद्र होने चाहिए।
4- Commitment to Self- स्वयं के प्रति प्रतिबद्धता – महात्मा बुद्ध का अंतिम वाक्य-“अप्प दीपो भव”। हमें अपना दीपक स्वयं बनना है। आचार्य के लिए आत्मचिन्तन, आत्म विश्लेषण आवश्यक है।
आचार्य स्व विकास में पांच बिन्दुओं को लेकर चर्चा करेंगे
1-Academic upgrade- शैक्षिक दृष्टि से अपना विकास करना। बालक को सब बातें सरलता से समझ में आएं इसके लिए नए-नए तरीके खोजना। अपने विषय से सम्बंधित नई-नई पुस्तकों का अध्ययन करनाA कमजोर बालक सामान्य स्तर पर आए इसके लिए नये-नये प्रयोग करना। Subject Excellence की ओर बढ़ना।
2-Technology- एक समय ऐसा था जब गाँव में कोई पढ़ा-लिखा नहीं होता था। पूरे गाँव की सब चिठ्ठी एक व्यक्ति ही पढता था। आज पढ़ना लिखना सामान्य बात हो गई है। Technology का जमाना है। आज यह सुनने को मिल सकता है “अच्छा आपको Computer नहीं आता” शिक्षा क्षेत्र में जुड़े हम आचार्यों को Computer आना आवश्यक हो गया है। क्योंकि आज बालक पहली कक्षा से Computer सीखता है। मेल खोलना एवं मेल करना Attachment के साथ, MS-Word में Letter Draft करना, प्रश्न पत्र बनाना, Excel में सामान्य जानकारी, PPT बनाना, Browser में Surfing करना इतना न्यूनतम आना चाहिए। Technology के उपयोग में हम शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ा सकते हैं।
3- Skill Development- हर व्यक्ति में कुछ ना कुछ Skill (कौशल) होती हैं। ऐसी Skill जो बालक सर्वांगीन विकास की दृष्टि से उसको सीखना आवश्यक है उन्हें सीखना और बालक को सिखाना। ऐसी Skill में, योग, संगीत, शारीरिक, सम्भाषण संस्कृत, वैदिक गणित, Art & Craft, रंगोली तथा Life Skill जो दैनिक जीवन में उपयोग आती हैं। वैसे आज के समय में उपरोक्त वर्णित Computer भी एक Skill हैं।
4- विद्या भारती- हम सब शिक्षा क्षेत्र में विद्या भारती योजना के अंतर्गत कार्य करने वाले कार्यकर्त्ता हैं। यह जानना आवश्यक है कि विद्या भारती शिक्षा के क्षेत्र में क्यों आई। इसका उद्देश्य क्या है? इसके लिय हमारा लक्ष्य समझना आवश्यक है। इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली का विकास करना है जिसके द्वारा ऐसी युवा पीढ़ी का निर्माण हो सके जो हिन्दुत्व निष्ठ एवं राष्ट्र भक्ति से ओत-प्रोत हो। शारीरिक, प्राणिक, मानसिक, बौद्धिक एवम आध्यात्मिक दृष्टि से पूर्ण विकसित हो तथा जो जीवन की वर्तमान चुनौतियों का सामना सफलतापूर्वक कर सके और उसका जीवन ग्रामीण, वनवासी, झुग्गी झोपड़ियों में निवास करने वाले दिन दु:खी आभावग्रस्त अपने बन्धुओं को सामाजिक कुरीतियों, शोषण एवं अन्याय से मुक्त कराकर राष्ट्र जीवन को समरस, सुसंपन्न एवं सुसंस्कृत बनाने की लिए समर्पित हो। इस लक्ष्य को पुष्ट करने के लिए विद्यालय में अनेक प्रकार की गतिविधियां, क्रियाकलाप व कार्यक्रम होते हैं। उसके पीछे का भाव समझना। उपरोक्त लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए कक्षा शिक्षण करना। विद्या भारती विचार के साथ एकरस होना।
स्वाध्याय विद्या भारती के वैचारिक अधिष्ठान की स्पष्टता एवं अधिकाधिक ज्ञानार्जुन के लिए स्वाध्याय यह एक आवश्यक माध्यम है। कहते हैं व्यक्ति जीवन भर विद्यार्थी रहता है, यह बात आचार्य पर भी लागू होती है।अध्ययन शीलता जीवन में बनी रहनी चाहिए।

5-भावनात्मक विकास - एक दिन इलाहाबाद विश्विद्यालय के बरामदे में जे.एस. राजपूत खड़े थेA पहली बार विश्विद्यालय आए थे। जो फार्म भरा उसमें गलत विषय भर दिए। फार्म ठीक करवाने गए तो ठीक नहीं हुआ। रज्जू भैया टहलते-टहलते जा रहे थे। आगे निकल गए, लौट कर आए। “इधर आओ” क्या Problem है? “नहीं सर कुछ नहीं।” अपने चैम्बर में ले गए। समझाया, उनकी गलती को कार्यालय से ठीक करवाया। जगमोहन सिंह राजपूत कहते हैं ऐसी कौन सी बात है कि शिक्षक राह चलते समझ लेते है। यह है एकात्म भाव। बालक व शिक्षा के साथ भावनात्मक जुडाव।
संतोष हेगड़े सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश थे। वे लिखते हैं, मेरे एक अध्यापक श्री जग्गनाथ शेट्टी ने मुझको बुलाया और कहा नोकरी छोड़ो, पढाई करो, नोकरी छुडवा दी, Law करवाया, मैं Advocate हुआ, हाईकोर्ट का न्यायधीश हुआ, हाई कोर्ट का Chief Justice हुआ। सुप्रीम कोर्ट का जज हो गया। This Credit goes to जग्गनाथ शेट्टी। He was a Teachers, he was not only a teachers. He was my guide, not only guide, He was like god. और आगे भी कहते है वे मेरे भगवान नहीं थे वो मुझे भी भगवन मानते थे। मै अपने को हॉकी का खिलाड़ी मानता था लेकिन उन्होंने कोर्ट का जज बना दिया।
शिक्षा देना यह व्यवसाय नहीं, ध्येय है। इसलिए है कि शिक्षा देना यह मनुष्य के निर्माण का कार्य है। इस कार्य को चाणक्य, प्रफुल्लचन्द्र राय, डॉ. राधाकृष्ण, प्रो. यशवंत राव केलकर जैसे अनेक आचार्यों ने पूजाभाव से किया वही हमारा आदर्श हैं। इन आचार्यों के रास्ते पर चलने की ईश्वर हम सबको शक्ति एवं भक्ति दे, ऐसी प्रार्थना है। एक विश्वास भी आत्म विकास करते हुए व बालकों का सर्वांगीण विकास करते हुए एक नये भारत का निर्माण हम कर सकेंगे। 
- रवि कुमार 

Comments

Popular posts from this blog

सरस्वती वंदना – शब्दार्थ व भावार्थ

विद्या भारती की शिशुवाटिका संकल्पना

संस्कार केंद्र की एक भावनात्मक घटना